*सिटीपीएस द्वारा वर्षों से प्रकल्पग्रस्तों का शोषण,पुख्ता सबूत के साथ मामला पहुंचा उच्च न्यायालय*

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  *चंद्रपूर*     

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दुर्गापुर सवांददाता- महाऔषनिक विद्युत केंद्र चन्द्रपुर ने प्रकल्प ग्रस्तों के रक्तसंबंधितों को नोकरी देने के नाम पर प्रशिक्षु बनाकर शोषण कर रही है। नहीं ढंग की वेतन और नहीं कोई अन्य सुविधाएं ही दे रही है। मजबूरन इनमें से 79 प्रशिक्षुओं ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।

चंद्रपुर महाऔषनिक विद्युत केंद्र ने बिजली केंद्र शुरू करने से पहले 1980 में किसानों से सैकड़ों एकड़ जमीन संपादित किया था। बदले में किसानों को नोकरी और पैसे देने का समझौता हुआ था।अधिकांश को उसी समय नोकरी दी जा चुकी थी। जिनके घरों में तब व्यस्क नोकरी करने लायक नहीं थे, उनके परिवारों के सदस्यों को 2009-2010 तक नोकरी दी जाती रही है। उसके बाद के प्रकल्प ग्रस्तों के रक्त संबंधितों को सिटीपीएस महानिर्मिति ने प्रशिक्षु कर के काम पर तो रखा, परन्तु स्थाई करने से कतराती रही है। वेतन देने की जगह मानधन दिया जा रहा है। मानधन भी मात्र 14000 ही दिए जा रहे है। 14 सालों से लगातार काम करने वालों भी प्रशिक्षु ही है। यह ऐसा कौन सा ट्रेनिंग है कि कभी खत्म ही नहीं होता है। पायलट, आई पी एस और आई एस की ट्रेनिग भी दो सालों से ज्यादा नहीं होता है। जिनके दादा दादी और नाना नानी के जमीन दिये जाने से हजारों लोंगों की स्थायी नोकरी मिली हुई है। पूरे राज्य बिजली से रोशन हो रहा है, उनके नाती, नातिन, पोते और पोतियों को नोकरी और वेतन के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

कलेक्टर का है प्रमाणपत्र

चंद्रपुर महाऔषनिक विद्युत केंद्र ने परियोजना पीड़ितों की जमीन का अधिग्रहण करने के बाद, उन्हें कलेक्टरेट के माध्यम से परियोजना पीड़ित प्रमाण पत्र दिए गए। इसमें स्पष्ट उल्लेख है कि परियोजना पीड़ितों को सरकारी नौकरियों में समाहित किया जाएगा, लेकिन वास्तविक स्थिति बिल्कुल विपरित है। राष्ट्रीय मानव अधिकार संसाधन विकास संगठन नागपुर के शेखर जनबंधु द्वारा आरटीआई से मांगी गई जानकारी से कई चौंकाने वाली तथ्य सामने आई। इसमें स्वयं महानिर्मिति मुख्यालय प्रकाशगढ़ मुंबई ने एक सर्कुलर जारी कर परियोजना पीड़ितों पर कई दमनकारी और अवैध नियम और शर्तें लागू कर दी हैं। इसमें परियोजना पीड़ित अपनी मांगों के लिए धरना या अनशन नहीं कर सकता, उन्हें वेतन पर प्रशिक्षु के रूप में काम करना होगा, कोई सरकारी सुविधाएं या अन्य रियायतें नहीं दी जाएंगी, परियोजना पीड़ित 45 वर्ष की आयु होने पर नौकरी छोड़ सकते हैं या नई नौकरी ले सकते हैं। पहले से कम वेतन पर नियुक्तियों में काम का सत्यापन स्टाम्प पेपर पर कराना अनिवार्य कर दिया गया है। स्टांप पेपर पर नौकरी नहीं चाहिए और सर्टिफिकेट रद्द करने की शर्त रखी गई है।

सर्कुलर नियम विरुद्ध

सर्कुलर में इसे जारी करने के लिए किसी सरकारी अध्यादेश या अदालती आदेश का जिक्र नहीं है। लेकिन मंत्रालय ने उनकी कोई सुध नहीं ली। शेखर जनबंधु ने सूचना के अधिकार में जानकारी प्राप्त की, राज्य सूचना आयोग के समक्ष प्रकरण क्रमांक 2456/2023 एवं 1776/2023 में दिनांक 27 फरवरी 2024 को हुई सुनवाई में यह सिद्ध हुआ कि महानिर्माण मुख्यालय प्रकाशगढ़ मुंबई द्वारा जारी प्रत्येक परिपत्र पारिश्रमिक पर प्रशिक्षु के रूप में काम अवैध है।

उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल

महानिर्मिति के शोषण करने वाले उटपटांग नियम व शर्तों से परेशान होकर 79 प्रशिक्षुओं की तरफ से
एड. शेखर जनबंधु ने 13 मार्च 2024 को परियोजना पीड़ितों की उचित मांगों के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में याचिका दायर की। याचिका को उच्च न्यायालय ने स्वीकार कर लिया है है।

*”हँलो चांदा न्यूज “, करिता जिल्हा प्रतिनिधी, राजूरा ,व गढ़चांदूर, वरोरा तालुका प्रतिनिधींची नियुक्ती करणे आहे. इच्छुक प्रतिनिधीने संपर्क साधावा.* 

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